Sunday 31 March 2013

बड़ा महत्त्व है


 

जीत में जोश का
निर्णय में होश का
प्यार में सन्देश का
बड़ा महत्त्व है ,,,

बाग़ में बहारों का
जीवन में यारों का
आसमान में सितारों का
बड़ा महत्त्व है .......


मिलन में इन्तजार का
बारिश में फुहार का
अपनेपन में मनुहार का
बड़ा महत्त्व है ......


घर में घरवाली का
 ससुराल में साली का
त्यौहार में दिवाली का
बड़ा महत्त्व है ......

.श्रृंगार में जेवर का
चुलबुले देवर का
चेहरे पे तेवर का
बड़ा महत्त्व है .....


खेत में खलिहान का
समय में विहान का
होंठों पे मुस्कान का
बड़ा महत्त्व है .....


नदी में पानी का
मज़ाक में मनमानी का
ननिहाल में नानी का
बड़ा महत्त्व है ......


दीपक में ज्योति का
सागर में मोती का
जीवन में उन्नति का
बड़ा महत्त्व है ....


सौदे में करार का
दोस्ती में दरार का
रिश्तों में व्यवहार का
बड़ा महत्त्व है .....


अमराई में कोयल का
शादी में शहनाई का
प्रकृति में हरियाली का
बड़ा महत्त्व है ....

Wednesday 20 March 2013

तो ..अच्छा होता




परिवर्तित अपना व्यवहार न करते                              
सपनों के साहूकार  न बनते 
संबंधों का सौदा कर 
दिल नहीं दुखाते अपनों का तो ....अच्छा होता ......
                                                                                                                                              
अतीत की कडवाहट को 
भविष्य के लिए  संजोकर 
वर्तमान से खिलवाड़ न करते तो ....अच्छा होता .....

दोष औरों का बताकर 
झूठ को सच का ज़ामा पहनाकर 
खुद को लाचार नहीं बताते तो ...अच्छा होता .....

चंद  दौलत की खातिर 
दोस्ती में दरार न लाते 
विश्वासघाती नहीं कहलाते तो ....अच्छा होता 

सुख में गाते 
दुःख में भी गाते 
इंसान को परख पाते तो…अच्छा होता ......

बीती बातें 
भूल गई थी 
यादें वापस नहीं आतीं तो... अच्छा होता .......

Thursday 14 March 2013

सोचो जरा


मनु के वंशज आओ 
जख्म जो तुमने दिए हैं ..
उसको तुम्हें बतलाऊँ ....

तुम यायावर और असहाय थे 
जंगली जानवरों जैसे तुम्हारा  जीवन और ..
उसके जैसे व्यवहार थे .....

मैंने दिया तुम्हें रहने को ...
प्यारा सा गेह 
जीने के लिए प्राणवायु 
पहनने के लिए वस्त्र 
खाने के लिए कंद -मूल 
ये था तुम्हारे प्रति मेरा स्नेह ....

पर बदले में तुमने हर लिए 
मेरे हिस्से के सुख-चैन 
कैसे काटूँ दिन को और कैसे काटूँ रैन ?


अपनी शाखाओं ,पत्तियों .फूलों और फलों से 
विहीन होकर कैसे मै जी पाऊँगा 
जो जरुरी है तेरे लिए उसे तुम  तक ..
कैसे  पहुँचाऊगा ?

उतना ही लो मुझसे 
जो जीने के लिए जरुरी है 
अति संग्रह करने की आदत 
कैसी तेरी मजबूरी है ?

लोलुपता से प्रेरित तेरे कई चेहरे हैं 
कैसे बताऊं शाख दर शाख 
जखम मेरे गहरे हैं 

पंचतत्व है तेरे जीवन का आधार 
जो आदिकाल से था तेरे पूर्वजों से पूजित 
अपने नादाँ कृत्यों से तूने उसे कर दिया प्रदूषित 
सोचो जरा ......मै  कैसे ?
तुम्हें भोजन,आश्रय  और प्राणवायु दे पाऊंगा 
जो मुझे तुम दे रहे हो ..
वही तो लौटाऊँगा ...

मै तो खाक होकर भी कुछ न कुछ दे जाऊँगा ...

चेतो मानव अब भी चेतो 
खुद में चेतनता का भाव भरो 
क्रूर नहीं बनाओ खुद को 
संवेदनाओं का श्रृंगार करो 
मेरे अस्तित्व को सुरक्षित कर 
अपने ऊपर उपकार करो 
अपने ऊपर उपकार करो ....