Saturday 6 August 2011

ऐ दोस्त


जीवन के इस दुर्गम पथ पर
पता नही क्या सोच रही हो?
कैसे कटते दिन तेरे हैं?
कैसे कटती रातें ?
इच्छा होती अब मेरी
करुँ मैं कुछ-कुछ बातें
तेरे दिल की तुम ही जानो
मैं अपना हाल सुनाती हूँ
हर दिन हर पल खुद को मैं
तेरे ही ख्यालों में पाती हूँ।

जीवन के इस मेले में
सभी हैं मेरे साथ पर
ऐ दोस्त एक तेरे बिना
मेरा दिल है बहुत उदास
यादों की अनमोल पूँजी
हैमेरे साथ जब हम हुआ
करते थे एक दुसरे के पास।

कितनी भी परेशानी आये
तुम होना नही उदास
बस यही एक विनती है
औ यही है मेरी मनोकामना
करना है तुमको हर मुसीबत का सामना
राह भले दुर्गम हो
कभी हिम्मत न हारना
क्योंकि------- तुम------
ईशान की जमीं हो-
सतीश की सर्वस्व-
माता-पिता की डोर हो औ
निशा की हो तुम भोर-
तुम,तुम नही हो
तुम-बहुत कुछ हो।  

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